जैविक वर्गीकरण सामान्य परिचय
जीव विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत समस्त सजीवों अर्थात जीवधारियों का विस्तृत अध्ययन किया जाता है बायोलॉजी शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1801 में लैमार्क और ट्रेविरेनस ने किया था|
जीव विज्ञान को विज्ञान की एक शाखा के रूप में स्थापित करने के कारण अरस्तु को जीव विज्ञान का जनक कहा जाता है|
अरस्तु को जंतु विज्ञान का जनक भी कहा जाता है|
उन्होंने अपनी पुस्तक Historia Animalium में लगभग 500 जंतुओं का वर्णन किया है|
थियोफ्रेस्टस को वनस्पति विज्ञान का जनक कहा जाता है जिन्होंने Historia Plantarum नामक पुस्तक लिखी|
सजीवों के गुण
संजीव स्वयं की प्रतिकृति बनाने वाले, स्वयं विकसित होने वाले एवं स्वयं विनियमन करने वाले संवादात्मक तंत्र होते हैं जो बाह्य उद्दीपनों के प्रति प्रतिक्रिया दिखाने में सक्षम होते हैं निम्नलिखित गुणों के आधार पर सजीवों को निर्जीवों से अलग किया जाता है-
1.कोशिकीय संगठन
सभी सजीवों की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई कोशिका है यह जीवों का एक निर्धारित लक्षण भी है|
2.उपापचय
जीवन को पूर्ण करने के लिए सजीवों में होने वाली सभी जैव रासायनिक क्रियाओं को सम्मिलित रूप से उपापचयी क्रियाएं कहते हैं ये दो प्रकार की होती है-
उपचयन: इस क्रिया द्वारा सजीवों के शरीर में सरल अणुओं से जटिल अणुओं का निर्माण होता है जैसे- वृद्धि क्रिया
अपचयन:
इस क्रिया द्वारा सजीवों के शरीर में जटिल अणु टूटकर सरल अणुओं का निर्माण करते हैं तथा ऊर्जा को मुक्त करते हैं जैसे- श्वसन क्रिया
वृद्धि
इस प्रक्रिया के अंतर्गत भोजन का उपयोग कर सजीवों में नई कोशिकाओं का निर्माण होता है|
प्रजनन
सजीवों द्वारा अपने समान जीवों को जन्म देने की क्षमता प्रजनन कहलाती है यह जीवों का मुख्य गुण है|
चेतना
यह सजीवों को निर्धारित करने वाला गुण है इसके अंतर्गत संवेदनशीलता आती है अर्थात सभी सजीवों में अनुभूति करने एवं प्रकाश, ताप, जल, गुरुत्व एवं रासायनिक पदार्थ आदि को प्रतिक्रिया करने की क्षमता होती है|
उपर्युक्त के अलावा गति, पोषण एवं उत्सर्जन भी सजीवों के लक्षणों के अंतर्गत आते हैं|
इन लक्षणों से स्पष्ट है कि पौधे तथा जंतु दोनों ही सजीव हैं निम्नलिखित लक्षणों के आधार पर पौधों तथा जंतुओं में विभेद किया जा सकता है|
जीवों के नामकरण की द्विनाम पद्धति
जीवों के आधुनिक वर्गीकरण की शुरुआत कैरोलस लीनियस के द्विजगत सिद्धांत से होती है उन्होंने जीवों को जंतु जगत और पादप जगत में बांटा इसलिए लीनियस को वर्गिकी का पिता कहा जाता है|
सन् 1753 में कैरोलस लीनियस ने जीवों के नामकरण की द्विनाम पद्धति को प्रचलित किया इसके अनुसार प्रत्येक जीवधारी का नाम लैटिन भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है पहला शब्द वंश नाम एवं दूसरा शब्द जाति नाम कहलाता है उदाहरण- मानव का वैज्ञानिक नाम होमो सेपियंस है जिसमें होमो उसे वंश का नाम है जिसकी एक जाति सेपियंस है|
जैव समुदाय के अध्ययन के लिए हमें जीवधारियों को कुछ समूहों में वर्गीकृत करना पड़ता है ताकि समान गुणों एवं संरचना वाले जीवों का अध्ययन एक साथ किया जा सके|
आधुनिक जीव विज्ञान में सर्वाधिक मान्यता व्हिटेकर के पांच जगत वर्गीकरण को दी जाती है उन्होंने जीवों को जगत नामक पांच बड़े वर्गों में बांटा ये पांच जगत है- मोनेरा, प्रोटिस्टा, कवक, पादप एवं जंतु
मोनेरा
यह एककोशिकीय प्रोकैरियोटिक जीवों का समूह है अर्थात इनमें न तो संगठित केंद्रक होता है और न ही विकसित कोशिकांग होते हैं इनमें केंद्रिका झिल्ली का अभाव होता है इनमें से कुछ में कोशिका भित्ति पाई जाती है तथा कुछ में नहीं पोषण के स्तर पर ये स्वपोषी रसायन संश्लेषी/ प्रकाश संश्लेषी अथवा विषमपोषी मृतजीवी/परजीवी दोनों हो सकते हैं
उदाहरण: जीवाणु, यथा नील हरित शैवाल तथा सायनोबैक्टीरिया, माइकोप्लाज्मा आदि|
प्रोटिस्टा
इनमें एककोशिकीय यूकैरियोटिक जीव आते हैं हालांकि कभी-कभी ये बहुकोशिकीय भी होते हैं यथा केल्प या समुद्री घास प्रोटिस्टा जगत पादप, जंतु एवं कवक जगत के बीच कड़ी का कार्य करता है इस वर्ग के कुछ जीवों में गमन के लिए सीलिया, फ्लैजेला नामक संरचनाएं भी पाई जाती है कुछ में कोशिका भित्ति पाई जाती है इनमें केंद्रीय का झिल्ली पाई जाती है तथा ये स्वपोषी और विषमपोषी दोनों तरह के होते हैं उदाहरण- एक कोशिकीय शैवाल, डाइएटम, प्रोटोजोआ, यूग्लीना, पैरामीशियम, क्लोरेला, अमीबा आदि इसी जगत के सदस्य हैं|
कवक/Fungi
ये बहुकोशिकीय यूकैरियोटिक जीव है यह विषमपोषी होते हैं जो पोषण के लिए सड़े गले कार्बनिक पदार्थों पर निर्भर रहते हैं अत: इन्हें मृतजीवी भी कह दिया जाता है इनमें से कई अपने जीवन की एक विशेष अवस्था में बहुकोशकीय क्षमता प्राप्त कर लेते हैं इन कवकों में काइटिन नामक जटिल शर्करा की बनी हुई कोशिका भित्ति पाई जाती है यीस्ट, पेंसीलियम, मशरूम आदि इसी जगत के सदस्य हैं|
सूक्ष्मजीव/Mocro-organism
संरचना के आधार पर सूक्ष्मजीवों का वर्गीकरण-
सबसेलुलर: इस प्रकार की संरचना में DNA या RNA एक प्रोटीन आवरण द्वारा घिरा होता है जैसे- विषाणु। विषाणु सूक्ष्म आकर के होते हैं परंतु ये अपना पोषण स्वयं नहीं करते इसके लिए इन्हें मेजबान की आवश्यकता होती है ये जीवाणु पौधों तथा जीवों में गुणन कर वृद्धि कर सकते हैं इन्हें निर्जीव एवं सजीव के बीच की कड़ी भी कहा जाता है|
• वायरस की खोज रुसी वैज्ञानिक दमित्री इवानविस्की ने 1892 में तंबाकू में मौजेक रोग की खोज के दौरान की थी|
• कुछ सामान्य रोग जैसे- जुकाम, फ्लू, खांसी आदि विषाणुओं के द्वारा होते हैं पोलियो और खसरा जैसी खतरनाक बीमारियां भी वायरस के कारण होती है|
प्रोकैरियोटिक: इनकी कोशिका संरचना साधारण होती है जिसमें केंद्रक एवं उपांग उपस्थित नहीं होते जैसे- जीवाणु यह प्रोकैरियोटिक एक कोशिकीय सरल जीव है ये मोनेरा जगत के अंतर्गत वर्गीकृत किए गए हैं कुछ बैक्टीरिया जैसे- नॉस्टॉक एवं एनाबिना पर्यावरण के नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर सकते हैं ये नाइट्रोजन, फास्फोरस, आयरन एवं सल्फर जैसे पोषकों के पुनर्चक्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं|
यूकैरियोटिक: इनकी कोशिका संरचना जटिल होती है जिसमें केंद्रक एवं विशेषीकृत उपांग उपस्थित होते हैं जैसे- प्रोटोजोआ, कवक, शैवाल आदि|
• अधिकांश कवक परपोषित मृतजीवी होते हैं इनमें जनन कायिक खंडन, विखंडन तथा मुकुलन द्वारा होता है इनका उपयोग ब्रेड, बीयर इत्यादि बनाने में किया जाता है कुछ कवक मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं गंजापन, दमा एवं दाद- खाज का एक प्रमुख कारण कवक है इसके अलावा फसलों के कई रोग कवक द्वारा फैलते हैं जैसे- गेहूं का रस्ट रोग खमीर और मशरूम भी कवक है|
• सभी प्रोटोजोआ परपोषी होते हैं और प्राय: परजीवी के रूप में अन्य जीवों पर निर्भर रहते हैं ट्रिपैनोसोमा नामक निद्रा रोग का कारण भी प्रोटोजोआ ही है साथ ही मलेरिया, पेचिस जैसे रोग भी प्रोटोजोआ के कारण होते हैं |

नोट: सर्दी- जुकाम तथा फ्लू में एंटीबायोटिक दवाएं प्रभावशाली नहीं होती क्योंकि ये रोग विषाणुओं द्वारा फैलते हैं|
पादप/Plants
यह सेल्युलोस से बने को उसका भित्ति वाले बहुकोशिकीय यूकैरियोटिक जीवों का समूह है ये स्वपोषी होते हैं और प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया द्वारा स्वयं का भोजन बनाते हैं अतः क्लोरोफिलधारक सभी पौधे इस वर्ग के सदस्य हैं इनका शरीर ऊतकों एवं अंगों से निर्मित होता है पादपो को निम्न उपवर्गों में बांटा जा सकता है-
थैलोफाइटा

इन पौधों के शरीर के सभी घटक पूर्णरूपेण विभेदित नहीं होते अर्थात इनकी संरचना मूल, तना तथा पत्तियों में विभाजित नहीं होती है इस वर्ग के पौधों को सामान्यतया शैवाल कहा जाता है| ये मुख्यत: जलीय पादप
होते हैं जैसे- यूलोथ्रिक्स, स्पाइरोगाइर, कारा इत्यादि|
ब्रायोफाइटा

इस वर्ग के पादपों में जल एवं अन्य चीजों का शरीर के एक भाग से दूसरे भाग में संवहन के लिए विशिष्ट संवहनी ऊतक नहीं पाए जाते ये पादप तना और पत्तों जैसी संरचना में विभाजित होते हैं इस वर्ग के पौधों को पादप वर्ग का उभयचर भी कहा जाता है उदाहरण के लिए- मॉस, मार्केंशिया आदि
टेरिडोफाइटा

इन पौधों का शरीर जड़, तना एवं पत्तियों में विभाजित होता है इनमें संवहन ऊतक भी उपस्थित होते हैं उदाहरण- फर्न, मार्सीलिया, हार्सटेल इत्यादि उपयुक्त तीनों वर्गों के पादपो में जनन अप्रत्यक्ष होते हैं तथा इनमें बीज उत्पन्न करने की क्षमता नहीं होती
जिम्नोस्पर्म

यह पौधे नग्नबीजी होते हैं अर्थात इनके बीज फलों के अंदर नहीं होते ये पौधे बहुवर्षी, सदाबहार तथा काष्ठीय होते हैं जैसे- पाइनस तथा साइकस
एंजियोस्पर्म

इन पौधों के बीज फलों के अंदर बंद रहते हैं इनके बीजों का विकास अंडाशय के अंदर होता है जो बाद में फल बन जाते हैं इन्हें पुष्पी पादप भी कहा जाता है बीजपत्रों की संख्या के आधार पर एंजियोस्पर्म वर्ग को दो भागों में बांटा जाता है एकबीजपत्री जिनमें एक बीजपत्र होता है तथा द्विबीजपत्री जिनमें दो बीजपत्र होते हैं|
जंतु/Animalia
यह यूकैरियोटिक, बहुकोशिकीय विषमपोषी प्राणियों का वर्ग है जो कोशिका भित्ति रहित कोशिकाओं से बना है
• प्राणियों की संरचना एवं आकार में भिन्नता होते हुए भी उनकी कोशिका व्यवस्था, शारीरिक सममिति, पाचन तंत्र, परिसंचरण तंत्र एवं जनन तंत्र की रचना में कुछ आधारभूत समानताएं पाई जाती हैं इन्हीं विशेषताओं को वर्गीकरण का आधार बनाया गया है|
जंतु जगत के वर्गीकरण का आधार निम्न है-
• संगठन के स्तर
• सममिति
• द्विकोरिकी तथा त्रिकोरकी संगठन
• शरीर की गुहा या प्रगुहा या सीलोम
• खंडीकरण
• पृष्ठरज्जु
संगठन के स्तर:- यद्यपि प्राणी जगत के सभी सदस्य बहुकोशिक है परंतु सभी एक ही प्रकार की कोशिका के संगठन को प्रदर्शित नहीं करते कुछ में कोशिकीय स्तर का संगठन दिखता है तो कुछ में ऊतक स्तर का संगठन दिखाई पड़ता है प्लेटोहेल्मिंथीज तथा अन्य उच्च संघों में अंग स्तर का संगठन दिखता है ऐनेलिड, आर्थ्रोपोडा, मोलस्का, इकाइनोडर्मेटा तथा रज्जुकी में अंग मिलकर तंत्र के रूप में शारीरिक कार्य करते हैं जो अंग तंत्र के स्तर का संगठन कहलाता है|
विभिन्न प्राणी समूहों में अंगतंत्र विभिन्न प्रकार की जटिलताएं प्रदर्शित करते हैं जैसे- किसी में खुला परिसंचरण तंत्र पाया जाता है तो किसी में बंद परिसंचरण तंत्र|
सममिति:- प्राणी को सममिति के आधार पर भी श्रेणीबद्ध किया जाता है असममिति स्पंज में पाई जाती है जिसमें किसी भी केंद्रीय अक्ष से गुजरने वाली रेखा इन्हें दो बराबर भागों में विभाजित नहीं करती सीलेंटरेट, टीनोफोर तथा इकानोडर्म में अरीय सममिति पाई जाती है जिसमें किसी भी केंद्रीय अक्ष से गुजरने वाली रेखा प्राणी के शरीर को दो समरूप भागों में विभाजित करती है एनेलिड, आर्थ्रोपोडा आदि में द्विपार्श्व सममिति पाई जाती है जिसमें एक ही अक्ष से गुजरने वाली रेखा द्वारा शरीर दो समरूप दाएं एवं बाएं भाग में विभाजित हो जाता है
द्विकोरिकी या त्रिकोरकी संगठन:- सिंलेंटरेट जैसे प्राणियों में कोशिकाएं दो भ्रूणीय स्तरों जैसे- बाह्य एकटोडर्म एवं आंतरिक एकटोडर्म में व्यवस्थित होती है ये प्राणी द्विकोरिक कहलाते हैं
वे प्राणी जिनके विकसित भ्रूण में तृतीय भ्रूणस्तल अर्थात मीसोडर्म उपस्थित होता है त्रिकोरकी कहलाते हैं| जैसे- प्लेटीहेल्मिंथीज से रज्जुकी तक के प्राणी
प्रगुहा/ शरीर की गुहा:- शरीर भित्ति तथा आहार नाल के बीच में गुहा की उपस्थिति अथवा अनुपस्थित वर्गीकरण का महत्वपूर्ण आधार है मध्य त्वचा से आच्छादित शरीर गुहा को देहगुहा या प्रगुहा कहते हैं इससे युक्त प्राणी को प्रगुही प्राणी कहते हैं जैसे- एनेलिड, मोलस्क, आर्थ्रोपोड, इकानोडर्म तथा कार्डेट
कुछ प्राणियों में यह गुहा मीसोडर्म से आच्छादित नहीं होती ऐसे शरीर कुटगुहा एवं ऐसे प्राणी कूटगुहिक कहे जाते उदाहरण- ऐस्केल्मिंथीज
जिन प्राणियों में शरीर गुहा नहीं पाई जाती उन्हें अगुहीय कहते हैं जैसे- प्लेटीहेल्मिंथीज
खंडीकरण:- कुछ प्राणियों में शरीर बाह्य तथा आंतरिक रूप से श्रेणीबद्ध खंडों में विभाजित रहता है जिनमें कुछ अंगों की पुनरावृत्ति होती है इस प्रक्रिया को खंडीकरण कहते हैं उदाहरण- केंचुए का शरीर
पृष्ठरज्जु:- पृष्ठरज्जु मध्य त्वचा से उत्पन्न होती है जो भ्रूण विकास के समय पृष्ठ सतह में बनती है पृष्ठरज्जु युक्त प्राणी को रज्जुकी तथा पृष्ठरज्जु रहित प्राणी को अरज्जुकी कहते हैं|
जंतु जगत को पृष्ठरज्जु की उपस्थिति के आधार पर दो भागों में बांटा गया है-
1.नॉन कॉर्डेटा (Non-Chordata)/अरज्जुकी
2.कॉर्डेटा (Chordata)/रज्जुकी
नॉन कॉर्डेटा
(1) संघ (Phylum)
पोरिफेरा
- इस संघ के सदस्य सामान्यत: स्पंज के नाम से जाने जाते हैं|
- यह मुख्यतः समुद्री होते हैं एवं ज्यादातर असममिति होते है ये प्रारंभिक बहुकोशिकीय जंतु हैं एवं इनका शारीरिक संगठन कोशिकीय स्तर का होता है|
- इनका शरीर एक कठोर आवरण अथवा बाह्य कंकाल द्वारा आधार प्राप्त करता है जो सुई जैसे नुकीले कांटों या स्पंजिन फाइबर से बना होता है|
- इनके पूरे शरीर में अनेक छिद्र पाए जाते हैं|
- इनके शरीर में जल तंत्र या कैनाल सिस्टम पाया जाता है जल महीन छिद्रों के द्वारा शरीर के अंदर प्रवेश करता है एवं बड़े छिद्र द्वारा बाहर निकल जाता है|
- जल परिवहन के रास्ते से आहार ग्रहण, श्वसन गैसों का आदान-प्रदान तथा अपशिष्टों का निष्कासन आदि कार्य संपन्न होते हैं|
- उदाहरण- साइफा या साइकॉन, स्वच्छ जलीय स्पंज या स्पांजिला, बाथस्पंज या यूस्पांजिया|
सीलेंट्रेटा या निडेरिया
- इस संघ के सदस्य जलीय अधिकांशत: समुद्री, स्थानबद्ध या मुक्त रूप से तैरने वाले होते हैं जिनमें सममिति पाई जाती है
- इनमें स्पर्शक एवं निडोब्लास्ट पाए जाते हैं जो स्थिर रहने, रक्षा करने तथा शिकार पकड़ने में सहायक होते हैं
- इनमें ऊतक या स्तर का शारीरिक संगठन पाया जाता है एवं ये द्विकोरिक होते हैं शरीर दो आकर रूपों, तथा पॉलिप एवं मेडुसा में पाया जाता है पॉलिप एक स्थानबद्ध एवं बेलनाकार रूप है जिसके अंतर्गत हाइड्रा एवं एडेमसिया आते हैं जबकि मेडुसा छतरीनुमा आकर के मुक्त रूप से तैरने वाले होते हैं जिसके अंतर्गत ऑरेलिया या जेलीफिश कहते हैं
- कोरल आदि जातियां समूह में रहती है जबकि हाइड्रा एकांकी रूप से रहते हैं
- एडेमसिया सी- एनीमोन की एक प्रजाति है जो केकड़े के साथ सहजीवी संबंध दर्शाता है
नोट: हाइड्रा में श्वसन अंग तथा रक्त अनुपस्थित होते हैं तथा विसरण श्वसन के माध्यम से होता है
टीनोफोरा
- सामान्यतः इन्हें समुद्री अखरोट या कॉम्ब जैली कहते हैं
- ये सभी समुद्रवासी अरीय सममिति वाले द्विकोरिक जीव होते हैं तथा इनमें ऊतक श्रेणी का शारीरिक संगठन पाया जाता है
- शरीर में आठ बाह्य पक्षमाभी कॉम्ब प्लेट्स पाए जाते हैं जो चलने में सहायक होते हैं जीव दीप्ति के द्वारा प्रकाश उत्सर्जन करना टीनोफोर की मुख्य विशेषता है
- उदाहरण- प्लूरोब्रेकिआ तथा टीनोप्लाना
प्लेटिहेल्मिंथीज
• इस संघ के प्राणी पृष्ठाधार रूप से चपटे होते हैं अत: इन्हें चपटे कृमि भी कहा जाता है
• इनका शरीर त्रिकोरिक एवं द्विपार्श्वसममित होता है एवं अंग स्तर का शारीरिक संगठन पाया जाता है परंतु इनमें वास्तविक देहगुहा नहीं पाई जाती
• इस समूह के अधिकांश प्राणी मनुष्य तथा अन्य प्राणियों में अंतः परजीवी के रूप में पाए जाते हैं इनमें अंकुश एवं चूषक पाए जाते हैं
• विशिष्ट कोशिकाएं फ्लेम सेल्स परासरण एवं उत्सर्जन में सहायता करती है
• प्लेनेरिया में पुनरूद्भावन की उच्च क्षमता पाई जाती है
• उदाहरण- टीनिया सोलियम, फेसियोला
नोट: लीवर फ्ल्यूक या यकृत कृमि भेड़, बकरी, सूअर आदि के यकृत की पित्त नलियों में पाए जाने वाला एक चपटा कृमि है
निमेटोडा या ऐस्केल्मिंथीज
• इन प्राणियों का शरीर अनुप्रस्थ काट में गोलाकार होता है अतः इन्हें गोलकृमि कहते हैं
• ये मुक्तजीवी, जलीय तथा स्थलीय अथवा पौधों तथा प्राणियों में परजीवी रूप में भी पाए जाते हैं
• ये द्विपार्श्वसममिति, त्रिकोरकी तथा वास्तविक देहगुहा वाले जीव हैं इनका शरीर संगठन अंगतंत्र स्तर का है
• आहार नाल पूर्ण होता है एवं उत्सर्जन नाल शरीर से अपशिष्ट पदार्थों को उत्सर्जन रंध्र द्वारा बाहर निकालता है
• सामान्यतः इन्हें बीमारी फैलाने वाले परजीवी कृमि के रूप में जाना जाता है जैसे- हाथी पांव के वाहक फाइलेरिया कृमि एवं आंत में पाए जाने वाले गोलकृमि तथा पिनकृमि
• अक्सर मादा, नर से लंबी होती है
उदाहरण: गोलकृमि, पिनकृमि, फाइलेरिया कृमि, हुकवर्म या अंकुश कृमि
ऐनेलिडा
• इस संघ के प्राणी जलीय अथवा स्थलीय, स्वतंत्रजीवी एवं कभी-कभी परजीवी होते हैं
• वास्तविक देहगुहा वाले ये द्विपार्श्वसममिति, त्रिकोरकी तथा अंगतंत्र स्तर के संगठन को प्रदर्शित करने वाले होते हैं
• इनके शरीर की सतह स्पष्टत: खंड अथवा विखंडों में बंटी होती है इसलिए इस संघ को ऐनेलिडा कहते हैं
• नेरिस में नर तथा मादा अलग होते हैं परंतु केंचुए तथा जोंक में नर तथा मादा पृथक नहीं होते
उदाहरण: नेरीस, फेरेटिमा, हीरूडिनेरिया
आर्थ्रोपोडा
• यह प्राणी जगत का सबसे बड़ा संघ है पृथ्वी पर लगभग दो- तिहाई जाति आर्थ्रोपोडा ही है
• ये द्विपार्श्वसममिति, त्रिकोरकी तथा प्रगुही है तथा इनमें अंगतंत्र स्तर का संगठन पाया जाता है
• इनमें खुला परिसंचरण तंत्र पाया जाता है अतः रुधिर वाहिकाओं में नहीं बहता बल्कि देहगुहा ही रक्त से भरी रहती है रक्त रंगहीन होता है रक्त में हीमोग्लोबिन की अनुपस्थिति के कारण यह हीमोलिम्फ कहलाता है
• इनका शरीर बाह्य कंकाल से ढका रहता है
• शरीर सिर, वक्ष तथा उदर में विभाजित होते हैं इनमें संधि युक्त पाद पाया जाता है
• संवेदी अंग, जैसे ऐंटिना नेत्र, स्टैटोसिस्ट या संतुलन अंग आदि पाए जाते हैं
• नर एवं मादा पृथक होते हैं तथा ये अधिकांशत: अंडे देने वाले होते हैं
• मकड़ी स्पिनरेट्स की मदद से जाला बुनती है
• तिलचट्टा: हृदय 13 चैंबरों का बना होता है एवं यह Sensory Hairs द्वारा अल्ट्रासोनिक साउंड प्राप्त करता है
• सिल्वर फिश या रजत मीनाभ एक पंखहीन कीट है
• जोंक, मच्छर तथा खटमल में प्रतिस्कंदक पाए जाते हैं परंतु यह बर्रे में नहीं पाया जाता|
पेरिपैटस: यह एक Living Fossil अकशेरूकी है जो ओनिकोफोरा वर्ग से संबंधित है यह ऐनेलिडा एवं आर्थ्रोपोडा को जोड़ने वाले लिंक के रूप में जाना जाता है|
हॉर्सशू क्रैब या लिमूलस: एक समुद्री आर्थ्रोपोडा है जो एक केकड़ा न होकर मकड़ी के वर्ग ऐरेक्निडा के ज्यादा करीब माना जाता है यह भी एक Living Fossil है|
मोलस्का
• जंतु जगत का यह दूसरा सबसे बड़ा संघ है
• ये प्राणी स्थलीय अथवा जलीय होते हैं
• इनका शरीर द्विपार्श्वसममिति त्रिकोरिकी तथा प्रगुही होता है इनकी देहगुहा बहुत कम होती है तथा शरीर में थोड़ा विखंडन होता है
• शरीर कोमल होता है जो कठोर कैल्शियम के कवच द्वारा ढका रहता है
• इनमें खुला संवहन तंत्र पाया जाता है एवं श्वसन तथा उत्सर्जन कार्य भी होते हैं
• मुंह में भोजन हेतु रेतीजिह्रा पाई जाती है जो रेती के समान घिसने का कार्य करती है सिर पर संवेदी स्पर्शक पाए जाते हैं
• सामान्यत: नर एवं मादा पृथक होते हैं तथा अंडे देने वाले होते हैं
उदाहरण: पाइला या सेब घोंघा, पिंकटाडा या ओयस्टर, सीपिया, लोलिगो, ऑक्टोपस, एप्लिसिया, डेंटेलियम, कीटोप्लयूरा
एकाइनोडर्मेटा
• इस संघ के प्राणियों में कैल्शियम युक्त हड्डी से बना अतः कंकाल पाया जाता है इसलिए इनका नाम एकाइनोडर्मेटा पड़ा
• ये सभी समुद्री जीव है एवं इनमें अंगतंत्र स्तर का संगठन पाया जाता हैं
• ये त्रिकोरिकी तथा देहगुहायुक्त प्राणी होते हैं इनमें पाचन तंत्र पूर्ण होता है एवं स्पष्ट उत्सर्जन तंत्र का अभाव होता है
• एम्बुलैक्रल तंत्र या जल संवहन तंत्र इस संघ की विशेषता है जो गमन, भोजन ग्रहण तथा श्वसन में सहायक होता है
• नर एवं मादा पृथक होते हैं
उदाहरण: एस्टेरियस या तारा मीन, ओफीयूरा या भंगुर तारा, इकाइनस या समुद्री-अर्चिन होलोथूरिया या समुद्री कर्कटी, एंटीडोन या फेदर स्टार या समुद्री लिली
हेमीकार्डेटा
इसे पहले कार्डेटा संघ के अंतर्गत उप-संघ में रखा गया था, परंतु अब इसे एक अलग संघ के अंतर्गत नॉन कार्डेटा में डाल दिया गया है|
• ये समुद्री जीव हैं जो कृमि के समान होते हैं
• इनका संगठन अंगतंत्र स्तर का होता है ये द्विपार्श्वसममिति, त्रिकोरिकी तथा देहगुहा युक्त प्राणी है
• इनका शरीर बेलनाकार होता है तथा परिसंचरण तंत्र बंद प्रकार का होता है नर एवं मादा अलग- अलग होते हैं
• उदाहरण: बैलेनोग्लोसस, सैकोग्लोसस