मध्यप्रदेशकी मिट्टीयाँ Soils of Madhya Pradesh
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काली मिट्टी
निर्माण – इस मिट्टी का निर्माण बेसाल्ट चट्टानों के अपरदन से हुआ है।
अन्य नाम – इस मिट्टी को रेगूर मिट्टी, कपासी मिट्टी, चेरनोजम (कैल्शियम की अधिकता के कारण) व कन्हर के नाम से भी जाना जाता है।
क्षेत्रफल – यह मिट्टी मध्यप्रदेश के सर्वाधिक क्षेत्रफल लगभग 43% में पायी जाती है।
अधिकता – इस मिट्टी में आयरन, चूना, कैल्शियम तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
कमी – इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश (N, P, K) तत्वों की कमी होती हैं।
फसल – इस मिट्टी की प्रमुख फसलें कपास, सोयाबीन व मूंगफली है।
विस्तार – इस मिट्टी का विस्तार मालवा के पठार व निमाड़ क्षेत्र में मिलता है।
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अन्य विशेषताएँ-
• काली मिट्टी स्वयं जोत वाली (SELF PLOUGHIG) होती है। इसलिए सिंचाई की अधिक आवश्यकता नहीं होती है।
• काली मिट्टी का काला रंग टिटेनीफेरस मैग्नेटाइट के कारण होता है।
• यह मिट्टी पानी मिलने पर फूल (swell) जाती है व चिपचिपी (sticky) हो जाती है एवं पानी की कमी होने पर सिंकुड़ (shrink) जाती है।
प्रकार – काली मिट्टी का वर्गीकरण निम्न भागों में किया गया है-
• साधारण काली – साधारण काली मिट्टी मालवा क्षेत्र में पायी जाती है।
• गहरी काली – गहरी काली मिट्टी निमाड़ सतपुड़ा क्षेत्र में पायी जाती है।
• छिछली काली – छिछली काली मिट्टी सतपुड़ा क्षेत्र में पायी जाती है।
लाल-पीली मिट्टी
निर्माण – इसका निर्माण ग्रेनाइट व नीस चट्टानों के अपरदन से हुआ हैं।
अन्य नाम – लाल-पीली मिट्टी को चलका भी कहा जाता है।
क्षेत्रफल – लाल- पीली मिट्टी म.प्र. के लगभग 37% भाग पर पायी जाती है।
अधिकता – इस मिट्टी में आयरन (लोहा) तत्व की अधिकता होती है।
कमी – इस मिट्टी में हृयूमस, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश (N,P,K) तत्वों की कमी होती है।
फसल – यह मिट्टी धान के लिए सर्व उपयुक्त मानी जाती है।
विस्तार – लाल- पीली मिट्टी का विस्तार पूर्वी मध्यप्रदेश (बघेलखंड) में मिलता है।
विशेष – इस मिट्टी का लाल रंग फेरिक (आयरन) ऑक्साइड के कारण होता है। जल अपघटन के कारण इस मिट्टी का रंग पीला होता है।
मिश्रित मिट्टी
क्षेत्रफल – यह मिट्टी म.प्र. के लगभग 10% भाग पर पायी जाती है।
अधिकता – मिश्रित मिट्टी में आयरन की प्रचुरता होती है।
कमी – इस मिट्टी में NPK तत्वों की कमी होती है।
फसल – यह मिट्टी गेहूँ, धान व तिल के लिएि उपयुक्त है।
विस्तार – इसका विस्तार बुंदेलखंड व विंध्य क्षेत्र में मिलता है।
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जलोढ़ मिट्टी
निर्माण – नदियों के अवसाद जमने से हुआ है।
अन्य नाम – इस मिट्टी को दोमट मिट्टी भी कहा जाता है।
क्षेत्रफल – यह मिट्टी म.प्र. के लगभग 7% भाग पर पायी जाती है।
अधिकता – पोटाश की अधिकता के कारण यह मिट्टी सर्वाधिक उपजाऊ होती है।
कमी – इस मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी होती है।
फसल – इस मिट्टी की प्रमुख फसल गेहूँ व गन्ना है।
विस्तार – इसका विस्तार चम्बल व नर्मदा घाटी क्षेत्र में है।
विशेष – यह भारत के सर्वाधिक क्षेत्र में पायी जाने वाली मिट्टी है।
लेटेराइट मिट्टी
अन्य नाम – इसे लाल- भूरी मिट्टी कहा जाता है।
क्षेत्रफल – यह मिट्टी म.प्र. के लगभग 3% भाग पर पायी जाती है।
अधिकता – इसमें आयरन व एल्युमिनियम की अधिकता होती है।
कमी – इसमें हृयूमस की कमी होती है। यह मिट्टी सबसे कम उपजाऊ होती है।
फसल – इसकी प्रमुख फसलें ज्वार, मक्का व कॉफी हैं।
विस्तार – इसका विस्तार सतपुड़ा क्षेत्र ( छिंदवाड़ा, बैतूल) व मध्य भारत (मंदसौर, नीमच, श्योपुर) में मिलता है।
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